वरुण वागीश, नवभारत टाइम्स, मार्च 2012
हाल ही में भूटान यात्रा का मौका मिला। नेपाल के अलावा भूटान ही ऐसा पड़ोसी देश है, जहां जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट/वीजा की जरूरत नहीं पड़ती। भारतीय नागरिकता के सबूत के लिए हमारा वोटर आई कार्ड वहां मान्य है। इसके आधार पर भूटान का इमिग्रेशन डिपार्टमेंट परमिट जारी कर देता है। हम अपनी बाइक पर भूटान को एक्सप्लोर करना चाहते थे। एक दूसरे देश में अपनी बाइक ले जाने को लेकर खासी आशंकाएं थीं।
जानकारी मिली कि भूटान में सड़क के प्रवेश की अनुमति सिर्फ फुंतशोलिंग से है। हम सोच रहे थे कि इतनी सारी औपचारिकताएं पूरी करने में एक दिन तो लग ही जाएगा। वहां पहुंचकर इमिग्रेशन ऑफिस गए तो महज आधे घंटे में हमें परमिट जारी कर दिए गए। इसी तरह अपनी बाइक ले जाने की अनुमति भी अगले आधे घंटे में मिल गई। हमने महसूस किया कि भूटानी लोग नियम-कानून के प्रति काफी अनुशासित होते हैं। सड़कों पर भी अनुशासन साफ नजर आता है। पार्किंग में गाड़ियां बहुत सलीके से खड़ी नजर आती हैं क्योंकि गाड़ी खड़ी करने के लिए सड़क पर बॉक्स पेंट किए गए हैं।
पार्किंग के रेट काफी कम हैं। मसलन, फुंतशोलिंग जैसे व्यस्त शहर में भी हमसे बाइक पार्किंग के लिए दो ही रुपये मांगे गए। भूटान बेशक छोटा देश है, लेकिन वहां महंगी गाड़ियों की कमी नहीं है। लोग पूरी तरह आधुनिकता के रंग में नजर आते हैं जबकि बताया जाता है कि इस देश में टीवी का आगमन सन् 1999 में हुआ था। स्मोकिंग पर तो आज भी पूरे देश में पाबंदी है। सरकार ने ऐसे कई नियम बना रखे हैं जिनसे भूटान की सांस्कृतिक पहचान के साथ देश का प्राकृ तिक संतुलन भी बना रहे।
शायद यही कारण है कि एक नीति के अनुसार अभी तक हर साल एक संख्या विशेष तक ही विदेशी पर्यटकों को वहां घूमने की इजाजत दी जाती है। वह भी तब जबकि पर्यटन इस देश की आय का बड़ा स्त्रोत है। पारो नाम के शहर में भूटान का एकमात्र कमर्शल एयरपोर्ट है। यह विकसित शहर एक खूबसूरत खुली घाटी में बसा हुआ है। होटलों और रेजॉर्ट्स में लगभग सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं मिल जाती हैं। लेकिन आधुनिकता के रंग में रंगने के बावजूद इस शहर की हर इमारत से भूटानी लोगों का अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति प्रेम झलकता है।
पूरे शहर की इमारतों और सड़कों में एकरूपता है। इमारतों की साज-सज्जा पारंपरिक तौर-तरीकों से एक जैसे चटख रंगों से की गई है। सभी की ऊंचाई और डिजाइन एक जैसे हैं। सड़कें खुली और चौड़ी हैं। पारंपरिक ढंग से बनी इमारतों के सामने सलीके से खड़ी एसयूवी कारें इस शहर की शोभा और बढ़ा देती हैं। फुटपाथ बहुत खुले हैं, जिन पर घूमते हुए शॉपिंग करने का अलग ही मजा है। भूटान लगभग 70 प्रतिशत जंगलों से घिरा हुआ है। यह देश अपने लिए विकास का पैमाना लोगों की खुशी को मानता है। टिकाऊ और सार्थक विकास के लिए इस मॉडल को दुनिया के कुछ और हिस्सों में भी अपनाया जाने लगा है। प्राकृतिक संपदा, कला-संस्कृति और परंपरा को सहेज कर विकास करना भूटान से सीखा जा सकता है। इस देश की यात्रा के बाद लगता है कि हमें सार्थक विकास की परिभाषा पर अब गंभीरता से विचार करना चाहिए।
हाल ही में भूटान यात्रा का मौका मिला। नेपाल के अलावा भूटान ही ऐसा पड़ोसी देश है, जहां जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट/वीजा की जरूरत नहीं पड़ती। भारतीय नागरिकता के सबूत के लिए हमारा वोटर आई कार्ड वहां मान्य है। इसके आधार पर भूटान का इमिग्रेशन डिपार्टमेंट परमिट जारी कर देता है। हम अपनी बाइक पर भूटान को एक्सप्लोर करना चाहते थे। एक दूसरे देश में अपनी बाइक ले जाने को लेकर खासी आशंकाएं थीं।
जानकारी मिली कि भूटान में सड़क के प्रवेश की अनुमति सिर्फ फुंतशोलिंग से है। हम सोच रहे थे कि इतनी सारी औपचारिकताएं पूरी करने में एक दिन तो लग ही जाएगा। वहां पहुंचकर इमिग्रेशन ऑफिस गए तो महज आधे घंटे में हमें परमिट जारी कर दिए गए। इसी तरह अपनी बाइक ले जाने की अनुमति भी अगले आधे घंटे में मिल गई। हमने महसूस किया कि भूटानी लोग नियम-कानून के प्रति काफी अनुशासित होते हैं। सड़कों पर भी अनुशासन साफ नजर आता है। पार्किंग में गाड़ियां बहुत सलीके से खड़ी नजर आती हैं क्योंकि गाड़ी खड़ी करने के लिए सड़क पर बॉक्स पेंट किए गए हैं।
पार्किंग के रेट काफी कम हैं। मसलन, फुंतशोलिंग जैसे व्यस्त शहर में भी हमसे बाइक पार्किंग के लिए दो ही रुपये मांगे गए। भूटान बेशक छोटा देश है, लेकिन वहां महंगी गाड़ियों की कमी नहीं है। लोग पूरी तरह आधुनिकता के रंग में नजर आते हैं जबकि बताया जाता है कि इस देश में टीवी का आगमन सन् 1999 में हुआ था। स्मोकिंग पर तो आज भी पूरे देश में पाबंदी है। सरकार ने ऐसे कई नियम बना रखे हैं जिनसे भूटान की सांस्कृतिक पहचान के साथ देश का प्राकृ तिक संतुलन भी बना रहे।
शायद यही कारण है कि एक नीति के अनुसार अभी तक हर साल एक संख्या विशेष तक ही विदेशी पर्यटकों को वहां घूमने की इजाजत दी जाती है। वह भी तब जबकि पर्यटन इस देश की आय का बड़ा स्त्रोत है। पारो नाम के शहर में भूटान का एकमात्र कमर्शल एयरपोर्ट है। यह विकसित शहर एक खूबसूरत खुली घाटी में बसा हुआ है। होटलों और रेजॉर्ट्स में लगभग सभी तरह की आधुनिक सुविधाएं मिल जाती हैं। लेकिन आधुनिकता के रंग में रंगने के बावजूद इस शहर की हर इमारत से भूटानी लोगों का अपनी परंपरा और संस्कृति के प्रति प्रेम झलकता है।
पूरे शहर की इमारतों और सड़कों में एकरूपता है। इमारतों की साज-सज्जा पारंपरिक तौर-तरीकों से एक जैसे चटख रंगों से की गई है। सभी की ऊंचाई और डिजाइन एक जैसे हैं। सड़कें खुली और चौड़ी हैं। पारंपरिक ढंग से बनी इमारतों के सामने सलीके से खड़ी एसयूवी कारें इस शहर की शोभा और बढ़ा देती हैं। फुटपाथ बहुत खुले हैं, जिन पर घूमते हुए शॉपिंग करने का अलग ही मजा है। भूटान लगभग 70 प्रतिशत जंगलों से घिरा हुआ है। यह देश अपने लिए विकास का पैमाना लोगों की खुशी को मानता है। टिकाऊ और सार्थक विकास के लिए इस मॉडल को दुनिया के कुछ और हिस्सों में भी अपनाया जाने लगा है। प्राकृतिक संपदा, कला-संस्कृति और परंपरा को सहेज कर विकास करना भूटान से सीखा जा सकता है। इस देश की यात्रा के बाद लगता है कि हमें सार्थक विकास की परिभाषा पर अब गंभीरता से विचार करना चाहिए।